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रविवार, 30 जनवरी 2011

नाचे मयूरा जंगल में जैसे.......

राहो में चलते काफिलो के जैसे 
आसमां में उड़ते बादलो के जैसे
मैं भी अब चाहूँ आशना एक नया 
समंदर में उठते उन लहरों के जैसे .......... 


रौशनी सूरज की आती है जैसे 
चादनी चंदा की फैलती है जैसे
मैं भी चाहूँ दामन में हो अब खुशियाँ
खुशबू फूलों की फैली हो जैसे ...........


बारिश की बूदें गिरती है जैसे
वो लहरा के सावन आता है जैसे
मैं भी अब चाहूँ झूमूँ मैं ऐसे
नाचे मयूरा जंगल में जैसे.......

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