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बुधवार, 24 नवंबर 2010

लौटा दो वो बचपन.......

ज़र्रा ज़र्रा बेगाना लगता है, हमको तो ये सब फ़साना लगता है
वो बचपन की यादें ,वो बीता हुआ कल, क्यों अब सब वो हमको अफसाना लगता है
वो पहली बारिश की बूदो का गिरना, वो छोटी सी बातो पर लड़ना झगड़ना
वो पापा की डांट,वो मम्मी का प्यार, वो दोस्तों के सामने युहीं ही अकड़ना 
गाजर का हलवा,वो जलेबी का स्वाद,आता है हमको अभी भी वो याद
वो होली के रंग, वो दिवाली की सौगात,क्यों सीधी नहीं अब हर उतनी बात
वो लिखना खतो में,आसान थी हर बात,अब कह नहीं पाते वही अब दिल की कोई बात 
दुनिया हुई छोटी ,पर अपने हुए दूर,पा कर भी सब कुछ , क्यों हो गए हम मजबूर
ना चाहूं ये दौलत ना चाहूँ ये घर बार, दे दो बस हमको वो बचपन उधार
ना दिल में हो इर्षा , ना हो कोई तकरार, दिल में भरा हो जब बस प्यार ही प्यार 

 

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