पृष्ठ

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

जैसे लगता है बस, तू ही है, बस तू ही है.......

उफ़ ये तेरी अदा , कर देती है हमको तुझ पर फ़िदा 
उफ़ तेरी ये झुल्फे , लगती है जैसे बादल की हो घटा
उफ़ ये तेरे नयन , दे जाते हैं हमे क्यों सदा 
उफ़ तेरी खुशबू  , महका देती है ये फिजा 
यूँ न देखो , हमे तुम और ऐसे 
भूल जाता हूँ मैं,  अपने होने की वजह 
जैसे लगता है बस,  तू ही है, बस तू ही है 
मेरे जिंदा रहने की वजह.......... 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें