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गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

न समझना हमे ग़ालिब,और न कोई खयाम........


जाते हैं अन्दर जैसे एक दो जाम ,लेने लगते हैं हम बस उनके ही नाम
उड़ने लगते हैं सपने ,ले कर ख्वाहिशो की उड़ान
न समझना हमे ग़ालिब,और न कोई खयाम
ये तो बाते हैं दिल की ,जिन्हें देते हैं शायरी का आप नाम ..........



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