घर से निकलते हुए....
एक ख्वाहिश हमने भी की थी.....
अपनों से बिछड़ते हुए....
एक फरमाईश हमने भी की थी.....
दिल के पन्नो पर यूँ लिख कर अपने ज़ज्बात...
तेरी आशिक़ी की चाहत हमने भी की थी.....
ना हो कभी हम फिर से यूँ जुदा....
उस खुदा से ये गुज़ारिश हमने भी की थी...
सोचा न था आ जायेगा ये मोड़....
यूँ दामन छुड़ा जाने की साजिश , हमने न की थी........
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